इस घर में सबसे छोटा कौन है? | सच्ची डरावनी कहानी | Hindi Horror Story 2025

इस घर में सबसे छोटा कौन है – सच्ची डरावनी Hindi horror story
खिलौने अभी भी वहीं हैं… बस खेलने वाला नज़र नहीं आता।


यह **Hindi horror story** एक ऐसे घर की है जहाँ रहने वाले परिवार को रात में कुछ अनजानी आवाज़ें और अजीब घटनाएं महसूस होती थीं।  
यह डरावनी कहानी “इस घर में सबसे छोटा कौन है?” एक सच्ची paranormal घटना पर आधारित है, जो घर के सबसे शांत कोने में रुकते हुए भी कभी चैन नहीं देती थी।


कुछ रिश्‍ते जन्म से नहीं, मौत से बनते हैं

कहते हैं, हर इंसान के साथ उसका साया चलता है। कुछ के साथ…सिर्फ़ साया नहीं चलता, कोई और भी चल रहा होता है। मरने वाले सब नहीं चले जाते। कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने नाम, अपने कपड़े, अपनी पहचान पीछे छोड़ जाते हैं पर अपना हक़ छोड़कर नहीं जाते। यह कहानी है ऐसे ही एक “सबसे छोटे” बच्चे की – जिसे ये बात कभी मंज़ूर नहीं हुई कि इस घर में उससे छोटा कोई और आ जाए।


आरव और काव्या – दो साल की शादी, एक अधूरा खालीपन

आरव और काव्या की शादी को दो साल हो चुके थे। दोनों नोएडा में एक दो–मंज़िला किराये के मकान में रहते थे। ऊपर बेडरूम, छोटा सा स्टडी रूम और एक खाली कमरा, नीचे हॉल, किचन और गैलरी। आरव का काम IT में था –लंबी शिफ्ट, कॉल्स, deadlines… काव्या घर से ही freelance designing करती थी – और ज्यादातर समय अकेली रहती। ये दोनों की लव मैरिज थी। काव्या आरव को अच्छे से जानती थी – आरव काम में डूबा रहता है पर दिल से soft है। 

इसलिए उसे इस बात का ज्यादा मलाल नहीं होता था कि आरव उसे ज़्यादा समय नहीं दे पाता। बस एक ही कमी थी बच्चा नहीं था।दोनों की बातें वहीं आकर रुक जातीं – “अगले साल देखेंगे…” “अभी थोड़ा सेट हो जाएँ…” पर किसे पता था, सेट होने से ज़्यादा कुछ अनसेट होने वाला है।


ऊपर वाले कमरे से दौड़ने की आवाज़

एक दोपहर की बात है। आरव ने ऑफिस से call किया – “लंच कर लिया? टाइम पर खाना खाया कर, Madam।”  कॉल ख़त्म हुए दो–तीन मिनट भी नहीं हुए थे कि किचन में काम कर रही काव्या कोऊपर से ठक–ठक–ठक… ठम… ठक… जैसी आवाज़ आने लगी। जैसे कोई बच्चा कमरे में दौड़ रहा हो या पाँव पटक–पटक कर खेल रहा हो। ये सुन काव्य का दिल एकदम तेज़ धड़कने लगा। वो जल्दी–जल्दी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गयी।

सारे कमरे चेक किए – बेडरूम – खाली, स्टडी रूम - खाली, आख़री वाला खाली कमरा भी खाली, कही पर कोई भी नहीं। बस खिड़की खुली थी। काव्या ने सोचा “शायद हवा से कुछ गिरा होगा…”।एहतियात में उसने खिड़की बंद की, पर्दा ठीक किया और पीछे मुड़ी तो उसका दिल एक पल के लिए रुक सा गया। कमरे के बीचों–बीच एक छोटी–सी रंग-बिरंगी प्लास्टिक की गाड़ी पड़ी थी। चौकोर body, चार गोल पहिये, पीछे छोटा-सा स्प्रिंग।

इसकी वजह थी ?

इस घर में उनके पास कोई भी खिलौना नहीं था। काव्या ने गाड़ी उठाई, हाथ में पलट–पलट कर देखा – नई नहीं थी, जैसे कई साल पुरानी हो। उसने उसे corner में रखकर ज़्यादा सोचा नहीं इसके बारे में। उसे लगा  “शायद नीचे वाले पड़ोसी का बच्चा कहीं से लाकर छोड़ गया होगा…” ये सोचकर वो कमरे से निकल गई।

लंच के बाद काव्या को हल्की नींद आ गई थी। कितनी देर सोई, पता नहीं। लेकिन उसकी नींद अचानक बहुत तेज़ आवाज़ से टूटी – टीवी की आवाज़। उसने आँखें मलते हुए सोचा – “मैंने तो बंद किया था…” हॉल में गई – TV full volume पर चल रहा था।Remote table पर रखा था। घर में और कोई था ही नहीं जो ये चालू करे। उसने remote उठाया, TV को बंद करने के लिए जैसे ही power बटन दबाया – ठीक उसके कान के पास बहुत धीमे,बहुत नज़दीक से चुप्पी तोड़ती आवाज़ आई –

 “TV चलने दो… बंद मत करो…”

उसके पूरे शरीर में झटके से सिहरन दौड़ गई। उसने एक सेकंड भी सोचे बिना TV का plug switchboard से निकाल दियाऔर बाहर बालकनी में भाग गई। हाथ काँप रहे थे, दिल almost मुँह में आ चुका था। उसने mobile निकाला और तुरंत आरव को call किया।

“तुम भूत से नहीं, मुझसे नहीं डरती?” – आरव की हंसी

काव्या की काँपती आवाज सुनते ही आरव ने बिना एक मिनट गँवाएकाम छोड़कर घर की ओर auto पकड़ लिया। जब वो घर पहुँचा, काव्या balcony में बैठी थी और आँखों के नीचे नींद की जगह डर था। वो उसे अंदर लेकर आया – घर normal था।TV बंद, सब ठीक–ठाक। “देखो, कुछ नहीं है… तुम थक गई हो। ज़्यादा सीरियल देखती हो, यही सब होता है।”

आँखें पोंछते हुए काव्या बोली – “मैंने खुद सुना… कान के बिलकुल पास से…”

आरव ने मजाक में कहा – “तुम अगर मुझ जैसे आदमी से शादी करके survive कर सकती हो, तो किसी invisible भूत से क्यों डर रही हो? वो तो तुम्हें दिखाई भी नहीं देता।” थोड़ी देर में दोनों हँसने लगे। डर थोड़ा हल्का हुआ। रात को दोनों जल्दी सोने चले गए।सारे lights off, बस बेडरूम में हल्का सा lamp

करीब तीन बजे रात। घर में सन्नाटा था। काव्या की आँख अचानक खुल गई – उसे ऐसा लगा जैसे bedroom के दरवाज़े के बाहरकोई ठक… ठक… ठक… किसी चीज़ को दीवार से टकरा रहा हो। जैसे प्लास्टिक की गाड़ी दरवाज़े पर बार–बार मारी जा रही हो। उसने हल्की आवाज़ में कहा – “आरव… सुनो ना… कुछ आवाज़ आ रही है…” आरव ने आँखें खोले बिना कहा – “काव्या प्लीज़…

रात के तीन बजे भूत भूत मत शुरू करो। भूत जैसा तो मेरा boss है,उससे नहीं डरती, इन चीज़ों से डरती हो? सो जाओ।” आवाज़ थोड़ी देर में बंद हो गई। काव्या किसी तरह सो गई। लेकिन… कहानी ख़त्म नहीं हुई थी। सुबह 6 बजे इस बार नींद से उठने की बारी आरव की थी।

आरव प्यास से उठा। नींद में ही नीचे किचन की तरफ गया। फ्रिज खोला, बोतल निकाली, सीधे मुँह से पानी पिया। फ्रिज की हल्की रोशनी में उसकी नज़र अचानक अपने पैरों के पास पड़ी एक चीज़ पर गई – वही प्लास्टिक की गाड़ी। जो ऊपर वाले कमरे में देखी थी।उसने झुककर गाड़ी उठाई, हल्का–सा घुमाया, और बिना सोचे उसे hallway में दूर फेंक दिया। गाड़ी ठक की आवाज़ के साथ दीवार से टकराई। और कुछ ही सेकंड बाद वापस घिसटती हुई उसके पैरों के पास आकर रुक गई।

इस बार उसे बिलकुल साफ़–साफ़ एक बच्चों वाली आवाज़ सुनाई दी  > “फिर से फेंको ना… खेलते हैं…”

आरव का हाथ वहीं रुक गया। गाड़ी उसके पैर से हल्का–सा टकराई थी लेकिन उसके ऊपर किसी अदृश्य हाथ का एहसास था। तभी ऊपर से काव्या की नींद भरी आवाज़ आई – “आरव… क्या कर रहे हो? सुबह–सुबह खिलौने से खेल रहे हो क्या?” वो हड़बड़ाया –“कुछ नहीं… बस… बस ऐसे ही…” वो खुद समझ नहीं पा रहा था कि वो वहाँ कब से खड़ा है और यह खेल कितनी देर से चल रहा था। दीवार पर लगी घड़ी देखी – ठीक 7:00 बजे।

मतलब वो पूरे एक घंटे से इस गाड़ी को फेंक–फेंक कर किसी के साथ खेल रहा था… जिसे वो देख तक नहीं पा रहा था।


खुशखबरी – और खिलौनों का नया घर


उसी दिन काव्या और आरव रूटीन checkup के लिए डॉक्टर के पास गए। कुछ reports और test के बाद Doctor ने मुस्कुराकर कहा – > “Congratulations… आप माँ–बाप बनने वाले हैं।”काव्या के मुँह से धीमी–सी हँसी निकली, आँखों में नमी, दिल में पहली–बार कुछ पूरा होने वाली खुशी। आरव भी सारे डर, गाड़ी, आवाज़ भूलकर खुशी में खो गया। वापस आते समय उन्होंने market से छोटे–छोटे कपड़े, एक झूला, चटाई, और कुछ toys खरीदे – झुनझुने, नर्म plastic blocks, छोटी गाड़ियाँ।

घर पहुँचकर आधा दिन वो दोनों ये सोचते रहे कि “बेबी के लिए क्या कहाँ रखें।” काव्या ने ऊपर वाले खाली कमरे को baby room बनाने का सोचा। उसने वहाँ एक कोने में सारे toys ठीक से सजा दिए। वही पुरानी गाड़ी जो उसे पहले मिली थी, उसने भी वहीं रख दी ये सोचकर कि “शायद ये भी काम आ जाए।”

उस रात उसे कई दिन बाद बहुत अच्छी, गहरी नींद आई। जैसे पेट में पल रहा बच्चा उसे अंदर से थोड़ा मज़बूत कर रहा हो।


अगले दिन आरव ने सोचा काव्या को ज़्यादा rest चाहिए, तो उसने खुद ही breakfast बना लिया और quietly ऑफिस निकल गया। काव्या करीब 9 बजे जागी। नीचे जाकर खाना खाया, बर्तन sink तक ले गई। जैसे ही उसने प्लेट रखी, पीछे से एक हल्की आवाज़ आई – “झन… झन… झन… झन…”

वो उस sound की तरफ मुड़ी – एक छोटा wind-up खिलौनाजो कल ही उन्होंने खरीदा था – अपने आप चल रहा था। उसकी चाबी घुमाई भी नहीं थी, फिर भी वो टेबल पर घूमते हुए गाना बजा रहा था। काव्या ने उसे पकड़कर चाबी बंद की। “शायद आरव ने कल try करके ऐसे ही छोड़ दिया होगा…” उसने खिलौना side में रख दिया और ऊपर baby room में जाने लगी।

जैसे ही काव्या ने सीढ़ी पर पहला step रखा तभी ऊपर से कुछ गिरने की आवाज़ आई – ठन… ठन… ठन–ठन–ठक! एक प्लास्टिक की गाड़ी बिल्कुल ऊपर वाले मोड़ से लुढ़कती हुई नीचे आई और उसके पैरों के पास रुक गई। उसके कान में बहुत साफ़ आवाज़ गूँजी > “आओ ना… खेलते हैं… हम दो ही तो हैं अभी…”

उसके सिर में चक्कर आया, और आँखों के आगे अँधेरा छा गया। जब उसे होश आया, वो अस्पताल में थी।


अस्पताल – एक अधूरा सपना, और बहुत पुराना राज़


आसपास disinfectant की smell, white light, दाएँ-बाएँ मरीज, और सामने कुर्सी पर थका हुआ बैठा आँखों के नीचे गड्ढे लिये आरव। डॉक्टर ने भारी आवाज़ में कहा – > “हमें बहुत अफ़सोस है… pregnancy बच नहीं पाई। पैर फिसलने से internal injury ज़्यादा थी।” काव्या का दिल टूटकर सैकड़ों टुकड़ों में बिखर गया। आँखें सुनी, मुँह सूखा, दिमाग में बस एक चीज़ घूम रही थी –सीढ़ी, गाड़ी, आवाज़।

उसने धीमे से आरव का हाथ पकड़ा – “तुम… सुबह… किससे चिल्ला रहे थे? मैंने सुन लिया था…” आरव चुप। उसकी आँखों मेंअजीब–सा डर था जो काव्या ने पहले कभी नहीं देखा था। कुछ देर बाद वो धीरे–धीरे बोलने लगा  > “मैंने तुझे ये कभी अच्छे से नहीं बताया… बचपन में मेरा एक छोटा भाई था – निखिल। वो मुझसे पाँच–छह साल छोटा था। हमेशा मेरे पीछे घूमता रहता था…

‘भइया खेलो ना, भइया खेलो ना…’ एक दिन छत पर हम प्लास्टिक की गाड़ी से खेल रहे थे। मैं bore हो गया, नीचे जाने लगा… वो बार–बार कहता रहा, ‘एक बार और फेंको… आखिरी बार…’ मैंने गुस्से में कहा – ‘नहीं खेल सकता, मैं थक गया हूँ।’ वो खुद ही गाड़ी लेने दौड़ पड़ा। पैर फिसला… और वो नीचे गिर गया।”

काव्या की साँस अटक गई। आरव की आँखें भर गईं 

 “उसके बाद वो कई सालों तक मुझे दिखता रहा। मैं किसी से कहतातो सब लोग मुझे पागल कहते, कहते hallucination है।दवाइयाँ, doctor, पंडित सब हुए – पर वो गाड़ी लेकर मेरे कमरे के कोने में हर शाम खड़ा रहता। ‘भइया, खेलो ना…’ मैंने ignore करना सीख लिया। एक समय बाद उसकी मौजूदगी routine लगने लगी। मैंने उसे कभी नुक़सान पहुँचाते नहीं देखा… इसलिए मैं चुप रहा। तुझसे भी बस हल्का-सहल्का mention किया था। 

पर… शायद… जब उसे पता चला कि इस घर में अब उससे छोटा कोई और आने वाला है… वो बात उसके अंदर बैठ नहीं पाई।” काव्या की आँख से एक मोटा आँसू निकला।

अब puzzle जुड़ रहा था – गाड़ी, आवाज़, टीवी, खिलौना, सीढ़ियाँ… सब के पीछे एक ही बच्चा था, जो कभी बड़ा नहीं हुआ।


दो साल बाद – एक नया बच्चा, एक पुराना “सबसे छोटा”

समय – दो साल बाद। शहर वही, पर घर बदल चुका था। पुराना घर उन्होंने खाली कर दिया। अब वे एक अलग society के flat में रहते थे। Doc की सलाह, family का support – काफ़ी समय बाद काव्या फिर से pregnant हुई और इस बार सावधानी, दुआ, care सब के साथ एक प्यारी–सी बेटी अद्विका पैदा हुई। घर में फिर से toys, diaper, हँसी, रोना, lullaby।

पुरानी बातें धीरे–धीरे पीछे छूटने लगीं। या… कम से कम उन्हें ऐसा लगा। एक शाम काव्या kitchen में काम कर रही थी। आरव balcony में phone पर था। हॉल में अद्विका अपने छोटे–छोटे blocks से खेल रही थी। अचानक काव्या ने सुना – अद्विका किसी से बात कर रही है – हँस–हँस कर, जैसे कोई बहुत dear दोस्त हो।“ किससे बात कर रही हो, बेटा?” काव्या बाहर आई।

अद्विका ने मुस्कुराते हुए कहा > “मम्मा, भइया से।”

“कौन–सा भइया?”

बच्चों वाली मासूमियत के साथ उसने corner में इशारा किया > “उधर बैठे हैं… नीली गाड़ी वाला भइया। वो कहते हैं इस घर में सबसे छोटा वही है… कोई और उससे छोटा नहीं हो सकता।”


काव्या के हाथ से चम्मच फिसल कर गिर गया। कोने में उसे कुछ भी नहीं दिखा। बस दीवार के नीचे एक छोटा–सा नीला प्लास्टिक का निशान – जैसे किसी गाड़ी के पहिये ने अभी–अभी वहाँ से turn लिया हो।


आख़िरी बात – अगर घर में बच्चा “किसी और” से भी खेलता हो…

अगर कभी तुम्हारे घर में छोटा बच्चा हो और वो corner की तरफ देखकर मुस्कुराकर बात करे, अगर वो कहे कि “भइया भी खेलता है”, जबकि घर में और कोई बच्चा हो ही नहीं, तो ये मत समझ लेना कि ये सिर्फ़ उसकी imagination है। कभी–कभी जो बच्चे अधूरे चले जाते हैं, उन्हें ये बात मंज़ूर नहीं होती कि इस घर में उनसे छोटा कोई और आ जाए। और हो सकता है वो मुस्कुराते हुए तुमसे ये ही कह रहे हों > “देख लो… दुनिया चाहे जो कहे… इस घर का सबसे छोटा हमेशा मैं ही रहूँगा।”





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