मौत के बाद क्या सच में सब खत्म हो जाता है?
मृत्यु के बाद का जीवन… ये शायद इंसान का सबसे पुराना सवाल है। शरीर मिट्टी में मिल जाता है, ये सब जानते हैं। लेकिन जो डर, दर्द, धोखा, प्यार, नफ़रत – ये सब कहाँ जाते हैं? कई लोग कहते हैं,
“जो अधूरा रह जाए, वो भटकता है।”
आज की कहानी ऐसे ही एक अधूरे हिसाब की है – जो एक पहाड़ी शहर के पुराने होटल के कमरा 309 में अब भी पूरा होने का इंतज़ार कर रहा है। इस कहानी के दो मुख्य किरदार हैं –
आदित्य – जो बचपन से उन चीज़ों को देख सकता था जिन्हें आम लोग महज़ हवा समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
और
रिया – मुंबई की modern working महिला, जिसकी ज़िंदगी एक पहाड़ी होटल की खिड़की और वहां से दिखते खाई के ऊपर ठहरे धुंध के बीच फँस गई।
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आदित्य – जिसे लोग पागल समझते थे, पर वो सब देखता था
आदित्य जब छोटा था, तो उसे रात में कमरे के कोने में कोई बूढ़ा आदमी बैठा दिखाई देता था – जिसके पैर ज़मीन को छूते ही नहीं थे।
वो अपने पापा से कहता – “वो फिर आ गया…” पापा हँसते –
“ये सब तेरे दिमाग के खेल हैं।” मां डर जाती – गले में ताबीज, मंदिर के चक्कर, पंडित… सब कराया।
लेकिन एक बात साफ थी – आदित्य को जो दिखता था, वो किसी और को नहीं दिखता था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, वो “डर” धीरे-धीरे “आदत” बन गया। वो समझ गया – कुछ आत्माएँ चीखती हैं,
कुछ सिर्फ़ देखती हैं, और कुछ… किसी का शरीर ढूंढ रही होती हैं।
कॉलिज तक आते-आते उसे आस-पास के लोग अपनी weird problems के लिए बुलाने लगे –
“मेरे घर में अजीब आवाज़ें आती हैं…”
“बेटी रात को किसी और की तरह बात करती है…”
आदित्य न tantrik था, न बाबा। बस जो देखता, वो बता देता –
और कई बार इससे लोगों के घरों का डर कम हो जाता। धीरे-धीरे उसकी “बीमारी” ही उसका profession बन गई।
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रिया और करण – पहाड़ों के बीच नया होटल, नया सपना
कहानी का दूसरा chapter शुरू होता है मुंबई के एक फ्लैट से।
करण मेहरा एक आईटी कंपनी में senior manager था।
उसके पिता ओम मेहरा रिटायर रेलवे अफसर थे – जिन्होंने अपनी पेंशन और बचत से एक hill station में पुराना British-time का hotel खरीद लिया था। होटल का नाम था –
“हिलव्यू रेजीडेंसी”
पहाड़ों से घिरा, सड़क से थोड़ा हटकर, पीछे घना जंगल और सामने गहरी खाई। ओम मेहरा का सपना था – बुज़ुर्गी में अपना छोटा-सा family hotel चलाना। लेकिन health ख़राब होने पर उन्होंने करण से कहा – “बेटा, तुम लोग कुछ साल वहाँ रह लो।
होटल संभालो… fresh हवा है, लाइफ भी change हो जाएगी।”
रिया शुरू में हिचकिचाई – Mumbai से shift, career break, पहाड़ों में रहना… लेकिन शादी को भी दो साल हो चुके थे,
दोनों सोच रहे थे future के बारे में, तो akhirnya मान गई।
करन–रिया अपना सामान लेकर एक ठंडी शाम को हिलव्यू रेजीडेंसी पहुँच गए। फ्रंट से होटल बहुत प्यारा लग रहा था –
पुरानी लकड़ी की बालकनी, लॉबी में पुराने time की clocks,
लकड़ी की खुशबू, और पीछे – दूर पहाड़ों पर टिके बादल।
बस एक बात थोड़ी अजीब थी – मैनेजर भुवन ने check-in के समय धीरे से कहा – “सर, मैडम… एक बात ध्यान रखिएगा।
तीसरी मंज़िल वाला कमरा 309 रात के बाद avoid कीजिएगा।
और terrace पर railing के पास देर तक मत खड़े रहिएगा।”
करण ने हँसकर पूछा, “क्यों? भूत है क्या वहाँ?” भुवन ने कोई जवाब नहीं दिया। सिर्फ़ हल्की मुस्कान के साथ keys थमा दीं।
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होटल की तीसरी मंज़िल – और रहस्यमयी कमरा 309
पहले कुछ दिन normal गुज़रे। गेस्ट कम थे – off-season चल रहा था। रिया दिन में balcony से बादल देखती, रात को लाइटों से जगमगाता valley। होटल में कुल 4 floors थे – पर तीसरी मंज़िल (शहर की भाषा में fourth floor) हमेशा लगभग खाली रहती। वहाँ corridor के अंत में एक कमरा था – 309
उसके दरवाज़े पर अन्य rooms की तरह कोई सजावट, welcome hangings, कुछ नहीं। बस पुरानी लगी paint
और keyhole के पास हल्का-सा खरोंच। एक दिन housekeeping की लड़की से रिया ने casually पूछ लिया –
“309 में guest कम रहते हैं क्या?”
लड़की ने इधर-उधर देखकर धीरे से कहा –
“मैडम… कुछ लोगों को वहाँ रात को रोने की आवाज़ें आती हैं।
और कभी-कभी… कमरे के अंदर से terrace की तरफ कदमों के निशान खुद-ब-खुद बन जाते हैं। Manager ने उस floor को
ज़्यादातर बंद रख दिया है।” रिया ने इसे पहाड़ी लोगों की कहानी समझ कर नज़रअंदाज़ किया। लेकिन कहानी ने उसको नज़रअंदाज़ नहीं किया था।
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पहली घटना – नींद में terrace की railing
एक हफ़्ते बाद। ठंडी हवा, बाहर हल्की बारिश, बिजली बादलों में चमक रही थी। रात के करीब 2 बजे करण की नींद खुली।
उसने हाथ बढ़ाकर पास देखा – रिया bed पर नहीं थी। उसने सोचा शायद washroom में होगी। पर washroom खाली। दिल की धड़कन तेज़ हुई – वो कमरे से बाहर निकला। Corridor सुनसान,
खिड़कियों पर बारिश की बूँदें, और ऊपर terrace की तरफ जाती
iron की सीढ़ियाँ। उसे ऊपर से हवा की सीटी के बीच पैरों के हल्के घिसटने की आवाज़ आई। वो धीरे-धीरे terrace पर पहुँचा –
और उसकी साँसें अटक गईं। रिया terrace की railing पर खड़ी थी। पैर तार पर, हाथ साइड पर लटकते हुए, बाल खुले, चेहरा valley की तरफ। बस ज़रा-सा आगे झुकती…
तो सीधे नीचे – गहरी खाई।
करण ने धीरे-धीरे पास जाकर धीमी आवाज़ में कहा – “रिया… ओइ… क्या कर रही हो?” कोई जवाब नहीं। उसकी आँखें खुली थीं,
पर उनमें कोई पहचान नहीं थी – बस खालीपन।
करण ने अचानक तेज़ी से पीछे से पकड़कर उसे खींच लिया।
रिया गिरते-गिरते बची। उसने घबराकर surroundings देखा –
“मैं… यहाँ कैसे आई?
तुमने मुझे terrace पर क्यों लाया??” करण stunned था –
“मैंने? तुम खुद आई थीं! तुम railing पर चढ़ी हुई थीं।”
रिया को कुछ याद नहीं था। उसे लगा शायद sleepwalk हुआ होगा – हालाँकि उसे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। कुछ दिनों में दोनों ने इसे tension, weather, adjustment का effect मानकर भुलाने की कोशिश की। पर पहाड़ों में हर धुंध किसी वजह से रुकती है।
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दूसरी घटना – किसी और की आँखें, रिया के चेहरे पर
कुछ दिन बाद। एक रात करण शहर के bank काम से late लौट रहा था। होटल पर पहुँचा तो time करीब 1 बजे का था।
अजीब बात ये थी कि main gate lock नहीं था। अंदर घुसते ही
Lobby शांति से भरी… reception पे कोई नहीं… उसका दिल धक-धक। उसने कमरे की तरफ जाते हुए रिया को आवाज़ लगाई –
“रिया! मैं आ गया!” कोई जवाब नहीं। कमरा खाली। Bed पर हल्की सी सिलवट, जैसे कोई अभी उठकर गया हो। उसे अचानक hotel के पीछे gallery की तरफ से हल्की आवाज़ सुनाई दी –
कुछ गिरने की, कुछ घिसटने की। वो पीछे वाले corridor में पहुँचा। एक corner पर मुड़ते ही उसका खून सूख गया।
फर्श पर काँच की टूटी bottle, दूध बिखरा, और corner में बैठी
करीब पाँच साल की छोटी लड़की – नताशा, जो hotel cook की बेटी थी – डरी हुई रो रही थी। उसके सामने खड़ी थी रिया। पर वो रिया जैसी नहीं लग रही थी।
उसके चेहरे पर एक अजीब–सी leer – आँखों में लालपन, और ज़मीन पर बैठे बच्चे पर ऐसा घूरना जैसे वो इंसान नहीं, शिकार हो।
करण चिल्लाया – “रिया!! What are you doing?!” रीया झटके से उसकी तरफ मुड़ी। एक सेकंड के लिए उसके चेहरे पर confusion आया, फिर वो बुरी तरह कांपी और वहीं collapse हो गई। नताशा ने हिचकते हुए कहा –“भाईya… आंटी…
मुझको… दीवार से धक्का दिया… फिर बोलीं – ये बच्चा यहाँ नहीं रह सकता… ये कमरा मेरा है…”
रिया को होश आने पर कुछ भी याद नहीं था। उस घटना के बाद
hotel staff ने बचपन की कहानियाँ,
local rumer, पहले मालिक के बारे में सब फुसफुसाना शुरू कर दिया। करण ने practical होते हुए psychiatrist की मदद ली।
सब टेस्ट normal। Doctor ने कहा – “शायद stress है।
कुछ दिन आराम कराएँ, environment change करें।”
लेकिन environment ही तो problem था।
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खेल में आता है तीसरा किरदार – आदित्य की एंट्री
करण के पिता ओम मेहरा ये सब सुनकर पहाड़ों पर आ पहुँचे। उन्होंने एक local पंडित की सलाह ली – पर वो hotel के अंदर आने से भी डर रहा था। “ये पुराना hotel पहले sanatorium था, फिर किसी army officer की family यहाँ रही थी। उनकी wife ने building से कूदकर जान दी थी… तब से ऊपर वाली मंज़िल ठीक नहीं।
आप किसी ऐसे आदमी को बुलाइए जो ‘देख’ सके।” ओम मेहरा को किसी common friend ने आदित्य का नंबर दिया। “थोड़ा अजीब है लड़का, पर जो कहता है, वैसा ही निकलता है।” आदित्य पहली ही रात hotel पहुँचा। Lobby में घुसते ही उसके चेहरे का रंग बदल गया। उसे लगा जैसे दीवारों के भीतर कोई खड़ा उसे घूर रहा है।
तीसरी मंज़िल की तरफ देखते हुए उसके मुँह से खुद-ब-खुद निकला “किसी ने यहाँ बहुत गुस्से में खुद को गिराया था… पर वो खुद मरना नहीं चाहती थी। वो किसी को punishment देना चाहती थी।”
करण और ओम मेहरा एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। आदित्य ने धीमी आवाज़ में कहा – “मुझे उस room में जाना होगा जहाँ रिया सबसे ज़्यादा असहज महसूस करती है।” रिया ने काँपते हुए कहा –
“तीसरी मंज़िल…
corridor के अंत वाला room… 309…”
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कमरा 309 – दफ़्न ज़िंदगी की सच्चाई
कमरा 309 काफ़ी समय से बंद पड़ा था। भुवन ने hesitant होकर key दी। दरवाज़ा खुलते ही फफूँद, नमी, बंद पड़े कमरे की भारी गंध बाहर आई। अंदर पुराना double bed, एक लकड़ी की almirah, कोने में dressing table और balcony से
सीधे दिखती हुई निचली valley।
आदित्य ने कमरे में धीमे-धीमे चलते हुए आँखें बंद कर लीं। कुछ सेकंड बाद वो अचानक dressing table की तरफ मुड़ा, जहाँ cracked शीशा लगा था। उसने शीशे को हाथ लगा कर
बहुत धीरे कहा – “तुम्हारा नाम… लीना था, है ना?” रिया के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। कमरे की हवा और ठंडी हो गई।
आदित्य बुदबुदाया – “पति ने किसी दूसरी औरत के साथ धोखा किया… तुमने गुस्से में balcony से छलाँग लगा दी… लेकिन मरते वक्त तुम्हें अहसास हुआ कि उसने तुम्हारे लिए कभी प्यार महसूस ही नहीं किया… बस convenience थी… इसलिए तुम किसी भी शादीशुदा औरत को balcony के पास खड़ा नहीं देख सकती…”
एक झटके से कमरे का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
रिया कांपते हुए करन की बाँह पकड़कर खड़ी थी। आदित्य ने शांत स्वर में कहा – “ये सिर्फ़ जगह का भूत नहीं है… ये आत्महत्या में मरी औरत का अधूरा गुस्सा है। और उसे अब रिया के शरीर से ज्यादा बेहतर माध्यम नहीं मिल सकता था।”
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आख़िरी रात – जब सौदा पूरा करना ही पड़ा
आदित्य ने plan बताया – “आज रात… मुझे रिया के साथ यहाँ कमरे में रहना होगा। उसे provoke करना होगा, ताकि वो पूरी तरह सामने आए। तभी मैं उससे सीधे बात कर सकूँगा। लेकिन ये बहुत खतरनाक होगा।” करण ने मना किया – “मैं risk नहीं ले सकता। अगर रिया को कुछ हो गया तो?” आदित्य ने आँखों में सीधे देखते हुए कहा – “अभी तो हर दिन, हर रात risk है।
आज हम निर्णय करेंगे – या तो वो जाएगी, या हम यहाँ से।”
रात के करीब 12 बजे कमरा 309 में बस तीन लोग थे – आदित्य,
रिया और उसके भीतर रह रही वो चीज़ जो खुद को “लीना” समझती थी। आदित्य ने मोमबत्ती जलाई, कमरा अँधेरा था, बस मोम की लौ, बाहर से आती हल्की बादल की चमक।
उसने रिया से कहा – “तुम बस जो महसूस करो, कहो।”
थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद रिया के चेहरे पर अजीब-सा भाव आया।
उसकी आँखें ऊपर की तरफ घुम गईं, होठ काँपे, और अचानक voice बदल गई – “तुम लोग फिर मेरी जगह लेने आए हो…
ये कमरा मेरा है… ये balcony मेरी है… ये मौत, ये खाई…
सब मेरा है!” अब रिया नहीं, कोई और बोल रहा था।
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टकराव – एक के बदले एक
आदित्य ने calm रहते हुए कहा – “लीना, तुम मर चुकी हो।”
कमरे की दीवारें हल्की vibrate करने लगीं। रिया (या वो जो अब उसके अंदर थी) गुस्से से चीखी –
“तुम झूठ बोलते हो! मैं इस balcony से फिर किसी को गिराऊँगी… जैसे मुझे गिराया गया…” आदित्य ने बात काटी –
“किसी ने तुम्हें धक्का नहीं दिया था। तुम खुद कूदी थीं।
तुम्हारा गुस्सा तुम्हारा अपना था। और अब तुम उससे ज़्यादा लोगों को सज़ा देना चाहती हो जिनका कोई दोष ही नहीं।” रिया अचानक हँसने लगी – एक तेज़, कर्कश हँसी।
“एक मौत तो लेनी ही पड़ेगी, तब ही मेरा ग़ुस्सा शांत होगा।
अगर आज ये औरत नहीं गिरेगी… तो कोई और गिरेगा।”
इतना कहकर रिया अचानक bed से उठी, जोर से balcony के दरवाज़े की तरफ भागी। आदित्य ने समय गंवाए बिना उसका हाथ पकड़ा, उसे अपनी तरफ खींचा। करण और ओम मेहरा दरवाज़े के बाहर खड़े सब सुन रहे थे।
अचानक कमरे के अंदर भयानक झटका लगा – जैसे हवा उलटी दिशा में भागी हो। रिया का शरीर ढीला पड़ गया। उसकी आँखें बंद हो गईं। आदित्य एक पल को शांत हुआ, फिर उसे लगा जैसे किसी ने उसके सीने पर बर्फ का पत्थर रख दिया हो। कमरे की हवा अचानक ठंडी, बहुत भारी हो गई। और फिर… उसके अपने ही पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया। वो जैसे किसी और control में balcony की तरफ चल पड़ा।
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एक मौत – जो सौदा पूरा करती है
करीब आधे सेकंड के लिए आदित्य के चेहरे पर दो ज़िंदगियाँ दिखीं एक, जो लोगों को बचाना चाहती थी। दूसरी, जो balcony से एक और jump चाहती थी। उसने पीछे मुड़कर दरवाज़े के crack से खड़े करण की तरफ देखा – उसकी आँखों में बहुत साफ़ संदेश था –
“अपनी wife को पकड़कर रखो… मैं जा रहा हूँ…”
आदित्य के पैर balcony की railing पर चढ़े। उसने एक आख़िरी बार ठंडी हवा को गहरी सांस की तरह भीतर लिया।
फिर… एक चीख की आवाज़ और उसके बाद बस valley में
कोहरे का फटना। करण और स्टाफ नीचे भागे, पर जो होना था,
हो चुका था। आदित्य नीचे खाई में पड़ा था – शरीर टूटा हुआ,
लेकिन चेहरे पर अजीब-सी शांति। जैसे किसी ने बहुत भारी सामान
आखिरकार ज़मीन पर रख दिया हो।
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बाद की सुबह – होटल का इतिहास और एक अधूरा अध्याय
कुछ दिनों बाद भुवन ने पुरानी files, local papers, records खंगाले। उसे पता लगा – British time में यहाँ एक officer की पत्नी ने कमरा 309 की balcony से कूदकर आत्महत्या की थी।
उसका नाम था – लीना मेहर और सबसे चौंकाने वाली बात – उसके husband का नाम भी करण जैसा ही – करण मेहर था।
जैसे इतिहास वापस खुद को दोहराने की कोशिश कर रहा था,
पर इस बार किसी और ने बीच में आकर उस chapter को तोड़ दिया।
आदित्य की मौत के बाद रिया ठीक होने लगी। उसे अब ना terrace पर जाने की इच्छा होती ना mid-night में जाग कर walk करती। होटल कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया।
ओम मेहरा ने कमरा 309 को पूरी तरह सील करवा दिया।
किनारे छोटी सी marble plate लगवाई –
“In memory of Aditya- जिसने किसी अनजान औरत के गुस्से को खुद पर लेकर.एक अनजान औरत की ज़िंदगी बचाई।”
हिलव्यू रेजीडेंसी बाद में फिर से खुला। पर तीसरी मंज़िल dark रहती। कभी-कभी staff कहता है – रात को balcony के पास
किसी को सिगरेट पीते देखा, कोई चश्मा लगाए लड़का, जो valley की तरफ देख रहा था… फिर अचानक धुंध में घुल जाता है।
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आख़िरी बात
अगर कभी ऐसे होटल में ठहरो तो… अगर कभी तुम किसी पहाड़ी शहर में किसी ऐसे hotel में रुकने जाओ जहाँ staff तुम्हें
“किसी ख़ास कमरे से दूर” रहने को कहे, तो सिर्फ़ हँसकर ignore मत करना।
क्योंकि हर कमरा सिर्फ़ चार दीवार नहीं होता – कभी-कभी वहाँ किसी की आख़िरी चीख, आख़िरी छलाँग, आख़िरी नफ़रत अब तक अटकी होती है। और अगर balcony के इस पार
खाई हो… पेड़ों के बीच धुंध हो… और हवा में हल्की–सी फुसफुसाहट… तो railing पर झुकने से पहले एक बार सोच लेना
कहीं कोई तुम्हें नीचे बुला तो नहीं रहा।
